ध्यान साधना
ध्यान के अनेक प्रकार है पर ध्यान कोई विधी या क्रिया नहीं है। यह एक समझका नाम है| अक्सर एकाग्रता को ध्यान माना जाता है, चित्त को संकीर्ण करना एकाग्रता होता है, वो अलग है और ध्यान अलग है, ध्यान का अर्थ है, चित्त के सारे उहापोह को छोडकर उपर उठ जाना, विहंगम हो जाना। ध्यान है चित्त के प्रती साक्षी भाव। ध्यान उँचाई है, जहाँ से सब दिखाई पडता है। यह एक होश की स्थिती है। होश में की हुई सारी क्रियाएँ सजगता और गुणवत्ता के साथ होती है। अगर हम हमारे कर्म भी होश पूर्वक करते है तो वो भी ध्यान हो जाता है। जिस क्षण हम अकेले, शांत और अक्रिया में होते हैं, तो पूर्ण रूप से विश्राम में रहते है और स्वयं में स्थापित होते है। यही ध्यान है| नियमित रूपसे ध्यान करनेसे शरीर की और मन की अनेक बिमारीयाँ निवारण हो जाती है| ध्यान से बुध्दीमें धार आती है, बुध्दी कुशाग्र होती है, इसमें दिमाग को अतिरिक्त उर्जा मिलती है और यारदाश्त में सुधार आता है और व्यक्तित्व का चहुँमुखी विकास होता है| ध्यान से सांसारिक और अध्यात्मिक दोनों तरह के फायदे मिलते है, क्यूं की ध्यान से होश बढता है, धर्म की यात्रा भीतर की और अकेले की है, ध्यान से होकर हम धर्म तर पहुंचते है| ध्यान को केवल अनुभव के द्वारा समझा जा सकता है, इसलिए हररोज ध्यान जरूरी है| बस कुछ समय तक शांत बैठें, आती जाती साँस को देखे, अपने विचारोंको देखे, मस्तिश्क में आँखोंके पीछे मन केंद्रित करें और बैठें रहे| आप बिलकुल शांत हो जाएंगे|