पाँचवा चक्र विशुध्दी

बीज मंत्र साधना



मनुष्य की विशेषता है विशुध्दी चक्र, ये मन का चक्र है। नीचे के चार चक्र याने की मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणीपूर और अनाहत चक्र पशूओंमें भी विकसित होते है, और विशुध्दी, आज्ञाचक्र और सहस्त्रार चक्र बीजरूप में होते है। जैसे चेतना विकास की ओर बढती है तो विशुध्दी चक्र और आगे के दो चक्र विकसित होने लगते है। विशुध्दी चक्र समझ का चक्र है, ये चक्र जितना जितना खुलता है, वैसे वैसे प्राणी जैसा आदमी मनुष्य होने लगता है। प्रकृति पशूओंका सारा भार संभाल लेती है, पर मनुष्य को प्रकृतीने स्वतंत्रता दी है, कला भी दी है, समझ भी दी है। स्वतंत्रता इस बात की वह अपने निर्णय खुद ले। क्यूं की मनुष्य के साथ पशूओंसे जादा विकसित मन आता है तो उसके जीवन में सुख दु:ख भी आते हैं। जैसे हम हमारे छोटे बच्चोंका सारा काम कर देते है, पर बच्चे जवान होने पर खुद का सारा काम, जिम्मेवारीयाँ अपने कंधोंपर लेते है। वैसे प्रकृती ने मनुष्य को स्वतंत्रता दी है। ये चक्र बडा महत्वपूर्ण चक्र है, समझ के साथ कला, बुध्दी, प्रतिभा और अहंकार भी एवं मृत्यू का भी केंद्र है।

स्वस्थ विशुध्दी चक्र के लिए क्या करें –

निरहंकारी होकर ज्ञान का दान कर सकते हैं
कंठ में संयम करने और वहाँ ध्यान लगानेसे ये चक्र जाग्रत होने लगता है।