धर्म क्या है?
धर्म का अर्थ मजहब, संप्रदाय अथवा cult या religion नहीं है जैसे आमतौर पर समझा जाता है। धर्म का अर्थ हम कौनसी प्रॅक्टीसेस करते है इससे भी नहीं है।
जगत के सारे प्राणी, पंछी पौधे और जो भी यहाँ है वो सब अपने अपने धर्म के अनुसार चलते है, एक मनुष्य ही अपना धर्म ठीक से नहीं जानता। हमारे ऋषीमुनीयोंने इतनी सूक्ष्म दृष्टीसे मनुष्य के धर्म की खोज की है की क्या कहने, बहुत बारिकी से उन्होंने काम किया है। ये सारे ऋषी मुनी अतिप्रज्ञावान थे और अपनी प्रज्ञासे और तपश्चर्यासे उन्होंने जीवनका सार ढूंढा, परमात्माको ढूंढा, खुदको शुध्द रूपमें जाना, सारे ब्रह्मांडको जाना, प्रकृतीको भी जाना। धर्म संतुलन है, आत्मज्ञानी सदैव धर्ममें स्थित होता है इसलिए पूरी तरहसे स्वतंत्र भी होता है| धर्म स्वतंत्रता देता हैै|
अंग्रेजीमें धर्म के लिए शब्द ही नहीं है। अगर कुछ कहना ही है तो हम इसे मनुष्यका eternal character या property कह सकते है। ये जगत क्रमप्राप्त विकास करता है और हर वक्त बदलता है, मनुष्योंका धर्म विकास सहित सारे जगत के साथ मैत्रीसे, पूर्णता से जीना सिखाता है।