संसार क्या है ?

संसार एक ड्रामा है, नाटक है, इससे जादा कुछ नहीं।

महत्वपूर्ण आप है, मैं एक पात्र हो के आया हूँ। मेरा जीवन महत्वपूर्ण है। हमारी आँखोमें खुद के प्रति सम्मान चाहीए, स्वाभिमान चाहीए।

केंद्र हम है इस जीवन का, सारा आयोजन मेरे लिए है, मेरे सहयोग के लिए सब कुछ है। संसार से मुझे कुछ लेना देना नहीं है, संसार के माध्यम से कुछ अर्थ नहीं खोजना है, मैं खुद जीवन का अर्थ हूँ, मैं खुद जीवन की निष्पत्ति हूँ, निष्कर्ष हूँ, उसका आखरी फूल हूँ, उच्चतम शिखर हूँ। जो व्यक्ति संसारमें अर्थ खोजता है, वह निरंतर अर्थहीनता का अनुभव करता है। पर जब हम भीतर खोजते हैं, तो जीवन अर्थपूर्ण मालूम होता है।