दूसरा चक्र स्वाधिष्ठान

बीज मंत्र साधना



इसी चक्र द्वारा प्रकृती नवजीवन को पृथ्वी पर लेकर आती है, इसलिए संसारिक दृष्टीसे ये चक्र महत्वपूर्ण है क्यूं की ये प्रकृती का बहुत बडा अस्त्र है और इसीके द्वारा प्रकृती अपना चक्र चलाती है। साधक की उर्जा अगर इस स्थान पर रूकी है तो वो सच्चे जीवन का स्वाद भी नहीं ले पाएगा। स्वाधिष्ठान का आवेग बहुत शक्तीशाली होता है। उसे संतुलित करनेके लिए साधक अपने इंद्रियोंपर (आँख, त्वचा, नाक, कान, जिव्हा पर) पूरे मनोयोगसे, होश से साधना करते हुए, शरीर का अनुभव करते हुए अपने मन को दिखाए की इस भोग की वास्तविकता क्या है, जन्मो जन्मोंतक हम यहीं करते आये है औप फिर भी अपूर्ण है। इस चक्र के पार जाने के लिए समझ जरूरी है। न रोकनेसे, न छोडनेसे, न भोगनेसे - केवल होश से इस चक्र के पार हो सकते है।

स्वस्थ और संतुलित स्वाधिष्ठान चक्र के लिए –

प्रेम ध्यान कर सकते हैं (इसमें अपनी दोनो हथेलियाँ बाएँ के उपर दायी अपने ह्रदय तक्र पर रख के पूरे विश्व के लिए मंगल कामना करें ये भाव करते हुए की पूरे अस्तित्व को मैं प्रेम दे रहा हूँ हाथों की हखेंलियाँ आकाश की तरफ खोलकर भीतर से बाहर की तरफ फैलाएँ। ऐसा १० बार करें।
गरीबोंको भोजन, कपडे, पुस्तके दान करें, आर्थिक मदद करें। ४) माता के चरण वंदन करनेसे ये चक्र स्वस्थ होता चला जाता है।