स्वामी सत्यभारतीजी का परिचय
स्वामी सत्यभारती जी का जन्म 10 Oct 1965 को हुआ। उनका बचपन से ही वैराग्य का भाव रहा और खुद को जानने की तीव्र इच्छा रही। गुरूजी का जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा, जो उन्हें आत्मज्ञान के लिये तैयार कर रहा था। उस संघर्ष से उन्होंने बहुत कुछ सिखा। जीवन के बहुत से आयामोंसे वे गुजरे है। जीवन के बारेमें उनका चिंतन काफी तरीकेसे पूर्ण रहा है। जीवन के उतार चढाव का नजदिकी से अभ्यास रहा है इसलिए हमारे जीवन विषयक समस्याओं का समाधान बडी सहजता से और गहराईसे कर सकते है, मनुष्य स्वभाव की बारीकियाँ, हमारे मन की बिमारीयाँ समझते है। अपने साधकोंके प्रती करूणामय है और साधना के बारेमें सख्ती भी दिखाते है।
गुरूजी की साधना लंबी रही है। उनके सबसे पहले गुरू १ वर्ष की आयुमें रहे, इस प्रकार और सोलह गुरू से ज्ञान लेते हुए 45 वर्ष की आयुमें अपने 17वे गुरू सद्गुरू स्वामी ओमप्रकाश सरस्वती जी के सान्निध्य में उन्हें आत्मज्ञान हुआ।
इसी बीच गुरूजीने हिमालय की कन्दराओं और आश्रमो में साधना की। वहाँ उनको गूढ अनुभव हुए । हिमालय के एक ज्ञानी के पास रहकर सिखी हुई चक्रसाधना अब उन्होंने विकसित की है जिसे सुशक्ती चक्रसाधना नाम दिया है। ये विधी पूरे विश्वमें अब स्वामी सत्यभारतीजी के ही पास है। इस वेबसाईट द्वारा ये विधी, ज्ञान सहित आप तक पहुँच रही है।
पिछले 14 सालसे गुरूजी इस ज्ञान को बाँटनेमें अविरत लगे है और जीवन को पूरी तरह से कैसे जिए ये कला भी सिखा रहे है। उनका पूरा जीवन अब सत्संग, सेवा और भजन (चक्रसाधना) अधिकाधिक लोगोंके पास पहुँचाना इसी कार्य में लगा है।