जीवन का सत्य

मनुष्य स्वभावमें दु:ख है ही नहीं और मृत्यू का तो प्रश्न ही नहीं उठता है। मनुष्य का स्वभाव सत् + चित् + आनंद = सच्चिदानंद है। तो फिर प्रश्न यह उठता है की यदि दु:ख और मृत्यू मनुष्य का स्वभाव नहीं है तो फिर इतने लोग दु:ख, कष्ट, पीडा क्यूं भोग रहें है?

एक ही उत्तर है, वह है, मनुष्य का अज्ञान   और इस अज्ञान की जडें बहुत गहरी है।

परंतू एक बात सत्य है की मनुष्य यदि किसी प्रकारसे अपने सत्य स्वभाव को जान लें तो वह अपने सभी प्रकारे दु:खोंसे तत्काल मुक्त हो जाता है। खुद को जाननेकी यात्रा भीतर की है, उर्जा के स्त्रोत भीतर हैं और बाहर की वस्तूएँ भी मनुष्य को भीतर की उर्जा के कारण ही मिलती है। हमारे सात चक्र कमल हमारी जीवन उर्जा का भंडार है, जिनमें कभी न समाप्त होनेवाली उर्जा होती है। यदि ये चक्र अस्वस्थ और असंतुलित है तो हमारे जीवनमें दु:ख, पीडा, परेशानीयाँ होती है। इन चक्रोंको पीछे विज्ञान है और इन्हें शुध्द करने की विधी भी है, जो जानकर हम इन सात चक्रोंको संतुलित, स्वस्थ करके हमारा और हमारे अपनोंका का जीवन सुखी, आल्हादित और सुरीला बना सकते है।