Swami SatyaBharati

सफलता का सरल मार्ग

मैं कौन हूँ? कहाँसे आया हूँ?
क्यूं ये सुख-दु:ख झेल रहा हूँ?
जीवन का आनंद कैसे ले सकूं?

जानिये, स्वामी सत्यभारती के साथ!

Chakra Sadhana
ओशो
स्वामी ओमप्रकाश सरस्वती

ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति: पूजामुलं गुरूर्पदम् |
मंत्रमूलं गुरूर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरूर्कृपा ||
गुरूदेव स्वामी सत्यभारती
सत्संग
सेवा
भजन

स्वामी सत्यभारतीजी का परिचय


इसी बीच गुरूजीने हिमालय की कन्दराओं और आश्रमो में साधना की। वहाँ उनको गूढ अनुभव हुए । हिमालय के एक ज्ञानी के पास रहकर सिखी हुई चक्रसाधना अब उन्होंने विकसित की है जिसे सुशक्ती चक्रसाधना नाम दिया है। ये विधी पूरे विश्वमें अब स्वामी सत्यभारतीजी के ही पास है। इस वेबसाईट द्वारा ये विधी, ज्ञान सहित आप तक पहुँच रही है।

पिछले 14 सालसे गुरूजी इस ज्ञान को बाँटनेमें अविरत लगे है और जीवन को पूरी तरह से कैसे जिए ये कला भी सिखा रहे है। उनका पूरा जीवन अब सत्संग, सेवा और भजन (चक्रसाधना) अधिकाधिक लोगोंके पास पहुँचाना इसी कार्य में लगा है।

स्वामीजी ने अपना एक विशेष तंत्र बनाया है उसके तीन मुद्दे है - सत्संग, सेवा और भजन(साधना) । साथ में उन्होंने हिमालय के कन्दराओं में रहनेवाले गुरूसे सिखी हुई चक्रसाधना विकसित की है जो एक बहुत ही प्रभावशाली साधना है। ये साधना मनुष्य का चहुँमुखी विकास करके उसे आत्मज्ञान तक भी पहुँचा सकती है। इस साधना का नाम गुरूजीने सुशक्ती चक्रसाधना रखा है। आज के समय में इतनी परीणामकारक साधना शायद ही कहीं उपलब्ध है। इस वेबसाईट द्वारा सुशक्ती चक्रसाधना की विधी और गुरूजीने बरसा हुआ बहुमोल ज्ञान आप तक पहुँच रहा है, उसका पूरा लाभ लिजीए।

सद्य स्थिती

मनुष्य के जीवन की सबसे बडी विडंबना यह है की उसका स्वयं के उपर से विश्वास उठ गया है और यह हुआ है धर्म को गलत ढंगसे समझने के कारण। इस गलत समझ ने मनुष्य को पुरषार्थ करना नहीं अपितु पलायन करना सिखा दिया, जिससे मनुष्य नपुंसक एवं याचक बनकर रह गया है।

होना तो यह चाहिए था कि धर्म के माध्यम से हमें हमारी शक्ति से परिचय कराया जाता व उस शक्ति का सही उपयोग सिखाया जाता। हमें सिखाया गया कि शक्ति किन्हीं देवी देवताओं, भगवान, परमात्मा, ईश्वर इत्यादि के पास है और उसकी इच्छा के विपरीत कोई पत्ता भी नहीं हिल सकता है। इस मानसिकता ने मनुष्य को कोई गौरव नहीं दिया अपितु भय की अनंत गहराई तथा भयावह मानसिक रूग्णता दी है।

सुख, समृध्दी, स्वास्थ्य, आनंद और प्रेम का रहस्य

इस वेबसाईट द्वारा आपको अपनी जीवन शक्ति से परिचित करवाने का प्रयास है, जो आपके भीतर सात चक्र कमलोंके रूप में स्थित है| हर मनुष्य के पास शक्ति के कभी न समाप्त होनेवाले सात मुख्य भंडार है, जिनमें अलग अलग प्रकारकी अखूट शक्ति संपदा है| जिन शक्तियोंका उपयोग करके हमारा और हमारे अपनोंका जीवन संगीतमय और सुरीला हो सकता है, जिससे जीवन में अनंत आनंद और सुख पैदा होता है|
उर्जा ही सब कुछ है, मेरे भाईंयों और बहनों
सारा खेल उर्जा का है| उर्जा ही तो जीवन है| जिसके पास जादा जीवन उर्जा है वह जादा सकारात्मक होता है, शांत होता है, बाहर की परिस्थिती का असर उसपर नहीं होता है, वो खुदमें मस्त रह सकता है। और कम उर्जा वाले नकारात्मक जादा होते है, चिडचिडे और परेशान रहते हैं|
Energy Decay
आहार, निद्रा, भय और मैथुन ये चार स्थितीयाँ हर जीवमें होती है| आहार और निद्रामें उर्जा कमाई जाती है| चित्त शुध्दी की साधना से भी हम उर्जा कमाते है| उर्जा कमानेके लिए सुशक्ती चक्रसाधना अत्यंत उपयोगी होती है| सुशक्ती चक्रसाधना करनेसे चक्र शुध्द और संतुलित होने लगते है, इससे हमारे चारों तरफ गहरी शांति स्थापित होने लगती है और जैसे जैसे शांति बढती है उसी अनुपात में जीवन में सुख, समृध्दी, स्वास्थ्य, आनंद और प्रेम बढता चला जाता है|

सत्संग

सत्संग

सत् का संग करना, अर्थात जिसने सत्य को जाना है उसके साथ होना। संगत का परीणाम ऐसा होता है की जिनके साथ हम होते है, उनके जैसे हम होते जाते है। जो उनकी पसंद वो हमारी पसंद हो जाती है। संतोंके साथ रहनेसे तो बहुत जादा असर पडता है, उनकी कृपादृष्टी भी हमपर होती है। मनुष्य जीवनका एक ही लक्ष्य है वो है खुदको जानना, सत्य को जानना, और सत्य वो है जो तीनों कालोंमें बदलता नहीं है, और जो हमारा स्वरूप है।

सेवा

सेवा

दुनिया में जो आप करते है उसे सेवा समझके करो। सेवा हमें परमात्मा तक पहुँचा देती है। प्रेमसे और निस्वार्थ भाव से, भलाई के लिए किये हुए कर्म सेवा है| और हमारे कर्म अगर ऐसे है की सभी दुवाएँ देते है तो वो कर्म सेवा ही हो जाते है| इस संसार से हमें बहुत कुछ मिला है। हमने प्रकृतीसे, लोगोंसे, वनस्पतीजगतसे, प्राणीजगतसे, पंचमहाभूतोंसे जो लिया है उसका हिसाब नही। बदलेमें हमने क्या दिया? हमें भी कुछ लौटाना है, इस देने का नाम है सेवा। इस अहोभाव को मैं सेवा कहता हूँ। आपके पास जितना जो कुछ अच्छा है वो संसार को लौटा दो.. ये सेवा है। इससे आपका भाग्य भी बनेगा।
सेवा

भजन

भजन

भजन का अर्थ है साधना। अपने मन को संतुलित करना। मन की अशुध्दी को हटाना। मन चंचल होता है और विकारी भी और अनेक जन्मोंके पॅटर्न से भरा हुआ भी होता है। मन की अशुध्दी ही दु:ख पैदा करती है। और वास्तवमें साधना का अर्थ है मन के पॅटर्न को तोडना। इसके लिए दृष्टी अपनी तरफ ही रखनी है, खुद को ही बदलना होता है। ये सबसे जादा कठीन काम है। इसके लिए ध्यान, प्रेम ये दो पंख विकसित करने होते है। होश और स्वीकार भाव बहुत उपयोगी आता है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुः साक्षात्‌ परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
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स्वामी सत्यभारतीसबका मंगल हो सबका कल्याण हो

मंगल प्रार्थना

हे परमपिता परमात्मा-दुनियाके सभी प्राणीयोंको सुख, शांती, समृध्दी, सुंदरता, आनंद और प्रेम मिले|
हे प्रभू सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो| सबका मंगल हो सबका कल्याण हो, सबका मंगल हो सबका कल्याण हो|
परमपिता परमात्मा को धन्यवाद दें, अतीत, वर्तमान और भविष्यके सर्व गुरूओंको, सभी शुध्द चेतनाओंको प्रणाम करें और धन्यवाद दें, अपने गुरूको, अपने मार्गदर्शक को प्रणाम करें और धन्यवाद दें, इस पूरी प्रकृतीको प्रणाम करें और धन्यवाद दें, अपने सभी मित्रोंको, सभी शत्रूओंको, सभी लोगोंको जिनको आप जानते है और नहीं भी जानते हैं, सभी को प्रणाम और धन्यवाद दें, जिस स्थानपर आप बैठे है उस स्थानको प्रणाम करें और धन्यवाद दें, जिस यंत्रसे आप जुडें है उस यंत्रको प्रणाम करें और धन्यवाद दें, स्वयं को अपने आपको प्रणाम करें और धन्यवाद दें और अंतमें सभीके भीतर बैठे परमात्माको मैं प्रणाम करता हूँ और धन्यवाद देता हूँ,
ओम शान्ति: शान्ति: शान्ति: ||
साधना पध्दती के दो पंख - प्रेम और ध्यान
जिंदगीमें दो शब्द बहुत खास है - प्रेम और ध्यान
क्यों की ये अस्तित्व के मंदिर के दो विराट दरवाजे है।
एक दरवाजे का नाम है प्रेम और एक दरवाजेका नाम है ध्यान।
चाहे प्रेमसे प्रवेश कर जाओ
चाहे तो ध्यानसे प्रवेश कर जाओ
पर दोनों पंख चाहीए उडनेके लिए
शर्त एक ही है, अहंकार दोनों में छोडना पडता है।

ध्यान

ध्यान से होश बढता है, मन शांत होता है, और शांति के बाद प्रसन्नता आती है। ध्यान की अनेक विधीयाँ है पर ध्यान कोई विधी या क्रिया नहीं है। ध्यान है चित्त के प्रती साक्षी भाव।

होश और स्वीकार भाव से खुद को जाना जा सकता हैOsho